अम्बिकापुर में तपती दोपहरी और सूनी प्याऊ: बोतलबंद पानी पर बढ़ती निर्भरता, सामाजिक सरोकारों की अनदेखी

अम्बिकापुर 20 अप्रैल 2025।बढ़ती गर्मी, घटती मानवीय संवेदना और बोतलबंद पानी की मजबूरी – ये तस्वीर आज के समाज की एक कड़वी सच्चाई बन चुकी है। अम्बिकापुर जैसे शहरों में सामाजिक सरोकारों को फिर से जगाने की ज़रूरत है, ताकि प्यास बुझाने के लिए जेब नहीं, बल्कि इंसानियत काम आए। बहरहाल शहर में तापमान दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है और गर्मी से राहत पाने के लिए आमजन तरस रहा है। लेकिन चिंता की बात यह है कि इस चिलचिलाती धूप में शहर के अधिकांश हिस्सों में निःशुल्क प्याऊ की सुविधाएं या तो बंद हो चुकी हैं या पूरी तरह उपेक्षित हैं। जहां पहले समाज और प्रशासन मिलकर जगह-जगह प्याऊ लगवाया करते थे, वहीं अब ये दृश्य कम ही दिखाई देते हैं।इस स्थिति में एक नया चलन तेज़ी से बढ़ रहा है — बोतलबंद पानी की बिक्री। अब प्यास बुझाने के लिए लोगों को जेब ढीली करनी पड़ रही है। हर नुक्कड़ और दुकान पर पानी की बोतलें बिक रही हैं, और यह प्रवृत्ति मानवीय संवेदना के स्थान पर व्यवसायिक सोच को दर्शाती है।
बोतलबंद पानी: राहत या लाचारी.....?
बढ़ती गर्मी में जब लोगों को पीने का पानी तक न मिले, तब बोतलबंद पानी एकमात्र विकल्प बनकर सामने आता है। लेकिन हर किसी के लिए 20-25 रुपये की पानी की बोतल खरीद पाना संभव नहीं है, खासकर मजदूर, गरीब और छात्रवर्ग के लिए। इसका सीधा असर उनकी जेब और सेहत दोनों पर पड़ता है। कई बार कम गुणवत्ता वाले बोतलबंद पानी की वजह से स्वास्थ्य समस्याएं भी सामने आती हैं।
सामाजिक सरोकार का अभाव:
कभी प्याऊ लगवाना पुण्य का कार्य माना जाता था। समाजसेवी संस्थाएं, व्यापारी और नागरिक अपने स्तर पर इसकी पहल करते थे। लेकिन अब यह भावना कमज़ोर हो गई है। इसका स्थान मुनाफे और सुविधा ने ले लिया है। प्याऊ की जगह बोतलें और मुनाफा कमाने वाले काउंटर खड़े हो गए हैं।
स्थानीय नागरिकों की राय:
स्थानिक निवासी संजय बक्शी कहते हैं, "अब शहर में प्याऊ से ज्यादा बोतलबंद पानी के काउंटर हैं। यह सामाजिक बदलाव चिंताजनक है।"
वहीं छात्रा प्रतिक पासवान कहते हैं, "कॉलेज जाते हुए अगर पानी भूल जाओ तो मजबूरी में 20 रुपये की बोतल लेना पड़ता है, ये रोज़-रोज़ संभव नहीं।"
प्रशासन की भूमिका:
नगर निगम को चाहिए कि शहर में हर वार्ड में कम से कम एक प्याऊ अनिवार्य रूप से शुरू कराए, जिससे आमजन की बुनियादी ज़रूरत पूरी हो सके। साथ ही, समाजसेवियों और स्थानीय व्यापारियों को भी आगे आकर इस प्रयास को समर्थन देना चाहिए।