रामानुजनगर बीईओ पर लाखों की अवैध वसूली का आरोप, कलेक्टर से की गई शिकायत

रामानुजनगर बीईओ पर लाखों की अवैध वसूली का आरोप, कलेक्टर से की गई शिकायत
रामानुजनगर बीईओ पर लाखों की अवैध वसूली का आरोप, कलेक्टर से की गई शिकायत

सूरजपुर। रामानुजनगर विकासखंड के प्रभारी विकास खंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) पं. भारद्वाज एक बार फिर विवादों में हैं। हमर उत्थान सेवा समिति ने कलेक्टर कार्यालय में लिखित शिकायत देकर बीईओ पर स्वतंत्रता सेनानियों और महापुरुषों के वुडन फोटो फ्रेम की सप्लाई के नाम पर स्कूलों से लाखों रुपये की अवैध वसूली का आरोप लगाया है। इस मामले में निष्पक्ष जांच की मांग की है।शिकायत के अनुसार, बीईओ भारद्वाज ने रायपुर की एक निजी फर्म "मां कर्मा ट्रेडर्स" से प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल और महात्मा गांधी के फोटो फ्रेम सभी स्कूलों में भेजवाए। हर स्कूल को 5 फ्रेम दिए गए, और प्रति फ्रेम 620 रुपये के हिसाब से 3100 रुपये वसूले गए। यह रकम स्कूल ग्रांट मद से निकालकर सीएससी (कॉमन सर्विस सेंटर) के माध्यम से जमा कराई गई। दरअसल रामानुजनगर विकासखंड में 216 प्राथमिक और 92 मिडिल स्कूल हैं, यानी कुल 308 स्कूलों से यह राशि वसूली गई। अनुमान के अनुसार यह रकम 9.54 लाख रुपये से ज्यादा हो सकती है।

शिक्षकों पर दबाव, विरोध की हिम्मत नहीं कर पा रहे

सूत्रों के मुताबिक, स्कूलों के कई प्राचार्य और शिक्षक इस जबरन वसूली के खिलाफ हैं, लेकिन बीईओ के प्रभाव और दबाव के कारण खुलकर सामने नहीं आ पा रहे। कुछ शिक्षकों ने गुप्त रूप से यह जानकारी सामाजिक संगठनों तक पहुंचाई, जिसके बाद यह मामला सामने आया।

पहले भी लगे हैं भ्रष्टाचार के आरोप

शिकायत में यह भी उल्लेख है कि बीईओ भारद्वाज पहले भी विवादों में रह चुके हैं।सीएम जतन योजना के तहत स्कूलों में निर्माण कार्यों के लिए आई राशि में भी भारी अनियमितताएं सामने आई थीं। स्कूलों में निर्माण अधूरा था, लेकिन पूरा भुगतान हो गया था। जनपद सदस्यों ने आरोप लगाया था कि ठेकेदारों से कमीशन लेकर घटिया निर्माण कराया गया। उस समय भी कलेक्टर और सरगुजा आयुक्त को शिकायत की गई थी, लेकिन आज तक न तो जांच पूरी हुई और न ही रिपोर्ट सार्वजनिक की गई।

सामाजिक संगठन हुए सक्रिय, जन-जागरूकता अभियान की तैयारी

‘हमर उत्थान सेवा समिति’ ने प्रशासन से मांग की है कि बीईओ को तत्काल पद से हटाया जाए और जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी या अन्य विभाग से कराई जाए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जांच आवेदक की उपस्थिति में होनी चाहिए, ताकि कोई तथ्य छिपाया न जा सके।संस्था ने आने वाले समय में इस मुद्दे को लेकर जन-जागरूकता अभियान चलाने की भी घोषणा की है।

अभिभावकों और समाज में आक्रोश

इस पूरे प्रकरण को लेकर अभिभावकों, सामाजिक संगठनों और स्थानीय लोगों में भारी नाराजगी है। लोग पूछ रहे हैं – "जब स्कूलों में पीने का पानी, शौचालय, डेस्क, बिजली तक नहीं है, तब लाखों रुपये फोटो फ्रेम में क्यों खर्च किए जा रहे हैं...?"

स्थानीय लोग मानते हैं कि यह सिर्फ आर्थिक घोटाला नहीं, बल्कि गांवों में पढ़ने वाले हजारों बच्चों के भविष्य से धोखा है।

हर फोटो फ्रेम के पीछे छिपा है एक मासूम का सपना

जानकारों की मानें तो अगर यह पैसा किताबें, शिक्षण सामग्री, स्मार्ट क्लास या शिक्षक प्रशिक्षण में लगता, तो इसका फायदा बच्चों को मिलता। लेकिन यहां शिक्षा के नाम पर वसूली कर किसी की जेबें भरी जा रही हैं। हर वो फोटो फ्रेम जो किसी स्कूल में लगाया गया है, उसके पीछे किसी मासूम छात्र का टूटा सपना छिपा है।

प्रशासन की चुप्पी पर उठ रहे सवाल

सबसे बड़ा सवाल प्रशासन की चुप्पी पर है। पहले भी अनियमितता की शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, न ही किसी अफसर को जिम्मेदार ठहराया गया। ऐसे में लोगों को लग रहा है कि कहीं यह भ्रष्टाचार को संरक्षण देने की साजिश तो नहीं....?

बहरहाल यह मामला अब जिले में चर्चा का सबसे बड़ा विषय बन गया है। अब देखना है कि प्रशासन इस पर क्या कार्रवाई करता है।