सूरजपुर में रेलवे फाटक पर तड़पती रहीं 3 एंबुलेंसें… मरीज बेहाल, सिस्टम नदारद

सूरजपुर में रेलवे फाटक पर तड़पती रहीं 3 एंबुलेंसें… मरीज बेहाल, सिस्टम नदारद
सूरजपुर में रेलवे फाटक पर तड़पती रहीं 3 एंबुलेंसें… मरीज बेहाल, सिस्टम नदारद

सूरजपुर 16 अप्रैल 2025|छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में मंगलवार को जो हुआ, उसने न सिर्फ रेलवे प्रशासन, बल्कि पूरे सिस्टम की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया। भैयाथान-सूरजपुर मुख्य मार्ग पर स्थित रेलवे फाटक तकनीकी खराबी के कारण करीब एक घंटे तक बंद रहा। इस दौरान वहां से गुजरने की कोशिश कर रही तीन एंबुलेंसें बीच रास्ते में फंसी रहीं, जिनमें ज़िंदगी और मौत के बीच जूझते तीन मरीज थे। इसको लेकर स्थानीय स्तर पर लंबे अरसे से आक्रोश व्याप्त है कारण ओवरब्रिज का वादा, जो अब तक कागजों में सिमटी हुई है। दरअसल बीते कई वर्षों से इस फाटक पर ओवरब्रिज की मांग की जा रही है। कई बार बजट में इसका उल्लेख भी हुआ, पर ज़मीन पर कुछ नहीं बदला। चुनावों में यह मुद्दा उछलता है, लेकिन बाद में सब भूल जाते हैं।

कौन थे मरीज.....?

पहली एंबुलेंस में एक बुजुर्ग मरीज था, जिसे तेज़ स्ट्रोक आया था।दूसरी में एक महिला, जिसने ज़हर खा लिया था।तीसरी एंबुलेंस में एक युवती थी, जो बेहोश थी और सांस लेने में तकलीफ हो रही थी।तीनों को सूरजपुर जिला अस्पताल ले जाया जा रहा था। लेकिन फाटक पर लंबे समय तक परेशानी से रूबरू होकर पहुंचे।

गर्मी, धूप और जाम में फंसी इंसानियत

दोपहर करीब 12 बजे अदानी ग्रुप की कोयला मालगाड़ी परसा-केते से गुजरी। रेल तो निकल गई, लेकिन फाटक नहीं खुला। ऊपर से चिलचिलाती धूप, नीचे उबलती सड़क, और गाड़ियों की लंबी कतार। एंबुलेंस में मरीज तड़पते रहे, ड्राइवर लगातार सायरन बजाते रहे, पर कोई सुनने वाला नहीं।

रेलवे कर्मी गायब, प्रशासन मौन

करीब 45 मिनट तक फाटक यूं ही बंद पड़ा रहा। न कोई रेलवे कर्मचारी दिखाई दिया, न ट्रैफिक पुलिस। जब स्थानीय लोगों ने विरोध जताया और हंगामा शुरू किया, तब कहीं जाकर रेलवे अमला हड़बड़ाता हुआ मौके पर पहुंचा और मैन्युअली फाटक खोला गया।लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी,तीनों मरीजों को तुरंत वैकल्पिक रास्ते से अस्पताल भेजा गया, लेकिन उनके हालात गंभीर हो चुके थे।

स्थानीय लोग बोले – ये रोज़ की कहानी है

स्थानीय नागरिकों ने बताया कि यह फाटक आए दिन ऐसे ही बंद रहता है। कभी सिग्नल फेल, तो कभी तकनीकी खराबी – लेकिन कोई समाधान नहीं।

 हमने कई बार ओवरब्रिज की मांग की, आंदोलन किए, ज्ञापन सौंपे… लेकिन अफसरों और नेताओं को फर्क नहीं पड़ता।

प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल

पूरा घटनाक्रम जिला प्रशासन की तैयारी और तत्परता पर भी सवाल खड़े करता है। आखिर ट्रैफिक कंट्रोल और इमरजेंसी प्रबंधन की कोई योजना क्यों नहीं थी? एंबुलेंस जाम में फंस जाए, मरीज दम तोड़ने की कगार पर आ जाए – और कोई जिम्मेदार सामने न आए?

जनता का सवाल:

अगर किसी मरीज की जान चली जाती तो कौन होता जिम्मेदार?

क्या रेलवे और प्रशासन की लापरवाही अब जानलेवा हो चुकी है?

कब तक ओवरब्रिज सिर्फ फाइलों और भाषणों में रहेगा?

यह खबर सिर्फ एक फाटक की नहीं,

बल्कि उस सिस्टम की है जो तब तक नहीं जागता, जब तक कोई जान न चली जाए।

अब जनता पूछ रही है – क्या कोई जवाब देगा..?