"रेस्ट हाउस खोला तो पीट दिया, वनपाल की दबंगई"—दैनिक वेतनभोगी मजदूर की बेरहमी से पिटाई, अब अधिकारी कर रहे लीपापोती

May 8, 2025 - 23:33
May 8, 2025 - 23:58
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"रेस्ट हाउस खोला तो पीट दिया, वनपाल की दबंगई"—दैनिक वेतनभोगी मजदूर की बेरहमी से पिटाई, अब अधिकारी कर रहे लीपापोती
"रेस्ट हाउस खोला तो पीट दिया, वनपाल की दबंगई"—दैनिक वेतनभोगी मजदूर की बेरहमी से पिटाई, अब अधिकारी कर रहे लीपापोती

सूरजपुर वन मंडल में न्याय की जगह समझौता संस्कृति...? पीड़ित का बयान तक लिया या नहीं संशय बरकरार, सवालों के घेरे में जांच समिति..?

भैयाथान । सूरजपुर जिले के वन विभाग में मानवता और न्याय को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। भैयाथान तैनात दैनिक वेतनभोगी मजदूर अशोक गुप्ता को केवल इस बात के लिए पीटा गया कि उसने पूर्व मंत्री और वर्तमान विधायक के लिए रेस्ट हाउस खोल दिया। आरोप है कि वनपाल हुबलाल यादव ने उसे बेरहमी से पीट डाला।घटना ने जैसे ही समाचारों की सुर्खियों में शामिल होकर तूल पकड़ा, विभाग ने जांच समिति बना दी, लेकिन जांच के नाम पर सिर्फ औपचारिकता पूरी की जा रही है। स्थानीय सूत्रों की मानें तो पीड़ित अशोक का बयान तक रिकॉर्ड नहीं किया गया केवल खानापूर्ति कर उल्टा उसे चुप कराने और मामला रफा-दफा करने की कोशिश की जा रही है। कुलमिलाकर यह अकेली मार नहीं थी—इसमें छुपा था, तंत्र का वह चेहरा जो केवल आदेश मानता है, चाहे वह कितना भी अन्यायी क्यों न हो।

"श्रमिक है तो क्या, सम्मान नहीं".…..?

अशोक गुप्ता जैसा दैनिक वेतनभोगी मजदूर भले ही अस्थायी हो, लेकिन विभागीय ढांचे में उसकी भूमिका अहम है। उस पर हाथ उठाना केवल एक कर्मचारी पर नहीं, बल्कि विभागीय नैतिकता पर हमला है। सवाल यह है—क्या एक मजदूर की पीड़ा रेस्ट हाउस की कुर्सी से कमतर है?

जांच कमेटी या पर्दा डालने की कोशिश...?

मामले की गंभीरता बढ़ी तो विभाग ने जांच दल तो गठित कर दिया, लेकिन सूत्रों के अनुसार जांच केवल कागजी खानापूर्ति थी। पीड़ित कर्मचारी अशोक गुप्ता का बयान तक दर्ज नहीं किया गया।बल्कि, उस पर दबाव बनाया जा रहा है कि वह चुप रहे, समझौता करे और मामला खत्म करे। अब तो चर्चा ये भी है कि अशोक गुप्ता को नौकरी से निकालने की तैयारी चल रही है, जिससे वह डरकर पीछे हट जाए।

कर्मचारियों में बढता आक्रोश, 

वन विभाग के अंदर और अन्य विभागों में कार्यरत कर्मी भी इस घटना को लेकर रोष है। वे इसे "श्रमिक सम्मान का हनन" मानते हैं।दबि जुबां से कह रहे हैं कि “हम हर मौसम, हर परिस्थिति में जंगल की रक्षा करते हैं, और बदले में हमें अपमान और अत्याचार मिल रहा है,” 

"कमजोर की कोई सुनवाई नहीं"....?

अब आम लोगों के बीच यह सवाल तेजी से उठ रहा है — "अगर सत्ताधारी दल के विधायक से जुड़े मामले में विभाग लीपापोती कर सकता है, तो एक आम आदमी की शिकायतों पर क्या होता होगा..?"यह मामला केवल एक कर्मचारी की पिटाई नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की संवेदनहीनता और सत्ता के दबाव में बिखरती न्याय व्यवस्था का आईना है।

अब क्या करेगा विभाग...?

क्या वन विभाग पीड़ित को न्याय देगा...? क्या वनपाल पर कोई कार्रवाई होगी..? क्या अस्थायी कर्मचारी सुरक्षित महसूस करेंगे..? या फिर एक बार फिर किसी कमजोर की आवाज, विभागीय गठजोड़ के नीचे कुचल दी जाएगी..? साथ ही साथ समाज, न्याय, और शासन से जुड़े ये सवाल अब आम जनता के बीच गूंज रहे हैं।

यह सवाल जनचर्चाओ में शामिल 

मामला समाचारों की सुर्खियों में शामिल होने के बाद से क्षेत्र में हर गांव गली मोहल्लों में रहवासियों की ज़ुबां पर सबसे अधिक जनचर्चा है कि क्या वन विभाग व उसके अफसरों को आम आदमी की तकलीफ दिखाई देती है...? क्या न्याय सिर्फ ताकतवरों के लिए है...? इसके अलावा भैयाथान की यह घटना पर प्रशासनिक ईमानदारी और जवाबदेही पर बड़ा प्रश्नचिह्न है। अगर अब भी मजदूर को न्याय नहीं मिला, तो यह अन्याय नहीं—एक उदाहरण होगा कि व्यवस्था किसके लिए है और किसके खिलाफ।

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