जोगीबांध में राइस मिल ने किया तालाब दूषित, ग्रामीणों की फरियाद पर प्रशासन मौन

जोगीबांध में राइस मिल ने किया तालाब दूषित, ग्रामीणों की फरियाद पर प्रशासन मौन
जोगीबांध में राइस मिल ने किया तालाब दूषित, ग्रामीणों की फरियाद पर प्रशासन मौन

एकमात्र शासकीय तालाब दूषित, निस्तार के लिए भटक रहे ग्रामीण, जनप्रतिनिधियों-अधिकारियों पर उपेक्षा का लगाया आरोप 

अम्बिकापुर।शहर से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर बसे ग्राम जोगीबांध में एक राइस मिल की लापरवाही ने ग्रामीणों की जिंदगी को नरक बना दिया है। गांव का इकलौता शासकीय तालाब, जो कभी ग्रामीणों की जीवनरेखा हुआ करता था, अब राइस मिल के जहरीले वेस्ट मैटेरियल की वजह से प्रदूषण का अड्डा बन चुका है। तालाब का पानी इतना दूषित हो गया है कि ग्रामीण नहाने-धोने, पशुओं के लिए, और यहां तक कि मृत्यु के बाद होने वाले घाट पानी जैसे धार्मिक रीति-रिवाजों के लिए भी इसका उपयोग नहीं कर पा रहे। पानी की किल्लत के चलते ग्रामीणों को पड़ोसी गांवों का रुख करना पड़ रहा है। कई बार शिकायत के बावजूद प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की खामोशी ने ग्रामीणों के सब्र का बांध तोड़ दिया है। अब वे तालाब की सफाई और राइस मिल के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग को लेकर आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं।

राइस मिल का कचरा, तालाब की तबाही

जोगीबांध के ग्रामीण सुजीत राजवाड़े, फुलबसिया राजवाड़े, और भीखचंद राजवाड़े सहित दर्जनों लोगों ने बताया कि राइस मिल संचालक बिना किसी रोक-टोक के वेस्ट मैटेरियल को तालाब में बहा रहा है। इस कचरे में रासायनिक अवशेष और धान की भूसी शामिल है, जिसने तालाब को गंदगी का ढेर बना दिया है। सुजीत राजवाड़े ने गुस्से में कहा, "हमारा तालाब अब तालाब नहीं, कचरे का डब्बा बन गया है। राइस मिल वाले मनमानी कर रहे हैं और प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है। ग्रामीणों का आरोप है कि कचरे की वजह से तालाब की गहराई भी आधी रह गई है, जिससे बारिश में पानी जमा होने की क्षमता भी कम हो गई है।

ग्रामीणों की पीड़ा: निस्तार के लिए भटकाव

जोगीबांध का यह तालाब गांव की सांस्कृतिक और दैनिक जरूरतों का केंद्र रहा है। ग्रामीण पीने के पानी को छोड़कर, नहाने-धोने, कपड़े धोने, पशुओं को नहलाने, और धार्मिक कार्यों जैसे घाट पानी के लिए इसी तालाब पर निर्भर थे। लेकिन अब दूषित पानी ने उनकी जिंदगी को संकट में डाल दिया है। फुलबसिया राजवाड़े ने दुखी स्वर में बताया, "हमारे बुजुर्गों ने इस तालाब को बनवाया था, लेकिन अब यह किसी काम का नहीं। मृत्यु के बाद घाट पानी के लिए हमें दूसरे गांवों में जाना पड़ता है। यह हमारे लिए अपमान की बात है।" ग्रामीणों का कहना है कि पड़ोसी गांवों में भी पानी की कमी है, जिससे उन्हें कई किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाना पड़ता है। खासकर महिलाओं और बुजुर्गों को इसकी सबसे ज्यादा मार झेलनी पड़ रही है।

शिकायतों का ढेर, कार्रवाई शून्य

ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने तालाब के दूषित होने और राइस मिल की मनमानी की शिकायत कई बार ग्राम पंचायत, तहसील कार्यालय, जिला प्रशासन, और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से की है। कई बार लिखित आवेदन भी दिए गए, लेकिन नतीजा सिफर रहा। न तालाब की सफाई होती है, न राइस मिल पर कोई रोक। हमारी सुनवाई ही नहीं हो रही।" ग्रामीणों का आरोप है कि राइस मिल संचालक की ऊंची पहुंच की वजह से प्रशासन कार्रवाई करने से कतरा रहा है। 

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा

स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि राइस मिल का वेस्ट मैटेरियल न सिर्फ तालाब को नष्ट कर रहा है, बल्कि आसपास के भूजल, मिट्टी, और जैव विविधता को भी खतरा पहुंचा रहा है। तालाब में जमा  कचरा जलचरों को मार रहा है, जिससे मछलियां और अन्य जीव खत्म हो रहे हैं। जानकारों की मानें तो "यह कचरा भूजल में मिल सकता है, जिससे पूरे गांव का पीने का पानी दूषित हो सकता है। अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो यह पर्यावरणीय आपदा बन जाएगा।" 

ग्रामीणों की मांग: तालाब बचाओ, राइस मिल पर लगाम

जोगीबांध के ग्रामीण अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। उनकी मांग है कि राइस मिल का वेस्ट मैटेरियल तालाब में डालना तुरंत बंद किया जाए। साथ ही, तालाब की गहन सफाई की जाए, ताकि पानी फिर से उपयोग योग्य हो सके। ग्रामीणों ने यह भी मांग की है कि राइस मिल संचालक के खिलाफ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला प्रशासन सख्त कार्रवाई करे। 

आंदोलन की चिंगारी....

जोगीबांध के ग्रामीण अब संगठित हो रहे हैं। गांव के युवाओं ने सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया है। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि वे पड़ोसी गांवों के लोगों को भी साथ लेकर एक बड़ा प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं। उनका कहना है कि तालाब उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का हिस्सा है, और इसे बचाने के लिए वे हर हद तक जाएंगे।