निजी स्कूलों की मनमानी से हलाकान अभिभावक: चिन्हित दुकानों से ही किताब-कॉपी खरीदने की मजबूरी, जिम्मेदार तमाशबीन

अंबिकापुर (सरगुजा)13 अप्रैल 2025। नया शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही सरगुजा जिले के अंबिकापुर में निजी स्कूलों की मनमानी फिर एक बार चर्चा का विषय बन गई है। स्कूलों द्वारा किताब-कॉपी और स्टेशनरी की खरीदारी के लिए कुछ "चिन्हित" दुकानों का नाम देकर अभिभावकों को वहीं से सामान लेने को मजबूर किया जा रहा है। खुले बाजार में ये किताबें या तो उपलब्ध नहीं होतीं या जानबूझकर न के बराबर मात्रा में वितरित की जाती हैं, जिससे अभिभावकों के पास कोई विकल्प नहीं बचता।
कई अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों द्वारा सुझाई गई किताबें सामान्य दुकानों पर खोजने पर नहीं मिलतीं, या तो उन्हें बताया जाता है कि वह किताब स्कूल के कहे हुए विशेष दुकानों पर ही मिलेंगी। नतीजतन, अभिभावकों को दोगुने दाम पर वही किताबें और कॉपियां खरीदनी पड़ती हैं। यह एक सुनियोजित व्यापारिक रणनीति प्रतीत होती है, जिसमें स्कूल प्रशासन और बुक विक्रेता आपसी सांठगांठ से मुनाफा कमा रहे हैं।स्कूलों की यह नीति "एकाधिकार" (monopoly) जैसी स्थिति बना चुकी है, जहां परिजनों को मजबूरीवश उनके बताए हुए दुकानों की शरण लेनी पड़ती है। आश्चर्य की बात यह है कि यह सब कुछ शिक्षा विभाग की आंखों के सामने हो रहा है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर केवल औपचारिक जांच की बात होती है।
स्थानीय अभिभावकों की प्रतिक्रिया:
एक स्थानीय अभिभावक राजेश का कहना है, "मेरे बच्चे के स्कूल ने किताबों की सूची दी और साथ ही दुकानों का नाम भी बताया। मैंने जब बाजार में तलाश की तो बताया गया कि ये किताबें सिर्फ उन्हीं दुकानों पर मिलेंगी। ऐसे में हमारे पास कोई विकल्प नहीं था, चाहे कीमत कितनी भी हो।"
प्रशासनिक उदासीनता:
सरगुजा जिला शिक्षा विभाग को बीते शैक्षणिक सत्र में ज्ञापन दिए गए, लेकिन आज तक किसी निजी स्कूल के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। शिक्षा विभाग के अधिकारी केवल यह कहकर बच निकलते हैं कि "शिकायतों की जांच की जा रही है।"
सवाल खड़ा होता है:
शिक्षा जैसे संवेदनशील विषय पर खुलेआम व्यापार हो रहा है, और जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। आखिर यह संरक्षण किसका है? क्या शिक्षा को मुनाफे का माध्यम बना देना स्वीकार्य है?
क्या आएगा ऐसा समय
अब समय आ गया है कि शासन और प्रशासन निजी स्कूलों की इस मनमानी पर सख्त कदम उठाएं। जरूरत इस बात की है कि एक पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली विकसित की जाए, जिससे बच्चों की शिक्षा के साथ खिलवाड़ न हो और अभिभावकों को आर्थिक शोषण से मुक्ति मिले।