बेसहारा मालती की पुकार: ढाई साल से अंत्योदय राशन कार्ड का इंतजार, बेटे की मौत के बाद भी अटकी सहायता राशि
सूरजपुर/भैयाथान। एक माँ का दर्द, एक विधवा की बेबसी और एक टूटे दिल की गुहार—ग्राम पंचायत बड़सरा की मालती देवांगन की जिंदगी मानो दुखों का मेला बन गई है। पति की मृत्यु के बाद इकलौते बेटे की असमय मौत ने उन्हें पूरी तरह बेसहारा कर दिया। ढाई साल से अंत्योदय राशन कार्ड के लिए दर-दर भटक रही मालती को न सस्ता राशन नसीब हुआ, न ही बेटे की मृत्यु के आठ माह बाद परिवार सहायता राशि। ग्रामीण बैंक में बीमा राशि का क्लेम भी कागजी खानापूर्ति में उलझा पड़ा है। मालती की आँखों में आस की किरण अब धुंधली पड़ रही है, लेकिन सिस्टम की सुस्ती उनकी उम्मीदों को बार-बार कुचल रही है। कुलमिलाकर मालती की जिंदगी की यह त्रासदी न सिर्फ उनके दर्द को बयां करती है, बल्कि उस सिस्टम पर सवाल उठाती है, जो कागजों में तो बड़े-बड़े वादे करता है, मगर हकीकत में एक बेसहारा महिला की मदद को तरस रहा है। क्या मालती की पुकार सुनी जाएगी, या उनकी उम्मीदें कागजों में ही दफन हो जाएंगी...?
जिंदगी पर दुखों का पहाड़
मालती की जिंदगी में जैसे सुखों ने हमेशा के लिए मुंह मोड़ लिया। 14 नवंबर 2022 को उनके पति की मृत्यु ने परिवार की कमर तोड़ी, और फिर 14 अक्टूबर 2024 को उनके इकलौते बेटे सतानंद (21) की सूरजपुर में थिनर में आग लगने से हुई दर्दनाक मौत ने उन्हें पूरी तरह तोड़ दिया। सतानंद मालती की जिंदगी का एकमात्र सहारा था, जिसके कंधों पर परिवार का भविष्य टिका था। अब अकेली मालती न सिर्फ अपनों के गम से जूझ रही हैं, बल्कि सरकारी योजनाओं की लचर व्यवस्था ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है।
परिवार सहायता राशि: आठ माह से फाइल गायब
बेटे की मृत्यु के बाद मालती ने परिवार सहायता योजना के तहत आर्थिक मदद के लिए सूरजपुर तहसील कार्यालय में सभी दस्तावेज जमा किए। आवेदन ऑनलाइन और डाक के जरिए भैयाथान तहसील भेजा गया। मगर आठ माह बीत जाने के बाद भी फाइल का कोई अता-पता नहीं। भैयाथान तहसील की बाबू सुनीता पैकरा का जवाब है कि फाइल सूरजपुर से अब तक नहीं आई, जबकि ऑनलाइन सिस्टम में यह दर्ज है। मालती की थकी आँखें हर बार तहसील कार्यालय से खाली लौट रही हैं। सवाल यह है कि आखिर एक विधवा की सहायता राशि की फाइल कहां खो गई? क्या सरकारी अमले की संवेदनहीनता मालती की जिंदगी को और मुश्किल बना रही है?
बीमा राशि: कागजों में उलझी उम्मीद
मालती के बेटे सतानंद का खाता छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक, दर्रीपारा में था। उसने प्रधानमंत्री बीमा योजना में ₹20 और बजाज बीमा में ₹200 का नामांकन कराया था। हादसे के बाद मालती ने बीमा क्लेम के लिए बैंक के चक्कर लगाए, मगर ₹20 वाले बीमा में मृत पिता को नॉमिनी होने के कारण क्लेम निरस्त हो गया। दूसरी बीमा राशि का क्लेम तो किया गया, लेकिन वह भी कागजी जंजाल में फंसकर रह गया। बैंक प्रबंधन की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं मिल रहा, और मालती की थकी टांगें हर बार निराशा के साथ बैंक से लौट रही हैं।
अंत्योदय राशन कार्ड: ढाई साल की वेदना
मालती की पीड़ा यहीं खत्म नहीं होती। पति की मृत्यु के ढाई साल बाद भी उनका अंत्योदय राशन कार्ड नहीं बन सका। सरपंच के जरिए चार बार आवेदन देने के बावजूद 35 किलो सस्ता चावल उनके हिस्से नहीं आया। हर बार उनकी अर्जी कागजों में दबकर रह गई। उचित मूल्य की दुकान से सस्ता राशन पाने की उनकी आस अब टूटने की कगार पर है। मालती कहती हैं, “मेरे पास अब कोई नहीं, कम से कम सस्ता राशन तो मिले, ताकि दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो सके।”
मालती की गुहार, प्रशासन की चुप्पी
मालती ने प्रशासन से फरियाद की है कि उन्हें जल्द से जल्द अंत्योदय राशन कार्ड, परिवार सहायता राशि और बीमा राशि दिलाई जाए। उनकी कांपती आवाज और गीली आँखें सिस्टम से एक ही सवाल पूछ रही हैं—क्या एक बेसहारा विधवा की मदद के लिए कोई कदम उठेगा? उनकी कहानी सिर्फ व्यक्तिगत दुखों की नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र की उस संवेदनहीनता की है, जो जरूरतमंदों की पुकार को अनसुना कर देती है।
सवाल जो गूंज रहे हैं
- आठ माह से अटकी परिवार सहायता राशि की फाइल का जिम्मेदार कौन..?
- ढाई साल में अंत्योदय राशन कार्ड क्यों नहीं बन सका...?
- बीमा राशि के क्लेम में देरी की वजह क्या है...?