आदिवासी भूमि की हिफाजत के लिए कलेक्टर का सख्त रुख: पावर ऑफ अटॉर्नी के मामलों में होगी जांच, ऑनलाइन होगी कोर्ट की सुनवाई

आदिवासी भूमि की हिफाजत के लिए कलेक्टर का सख्त रुख: पावर ऑफ अटॉर्नी के मामलों में होगी जांच, ऑनलाइन होगी कोर्ट की सुनवाई

अंबिकापुर, 28 अप्रैल 2025। सरगुजा जिले में आदिवासियों की भूमि के अधिकारों की रक्षा के लिए कलेक्टर विलास भोसकर ने कड़ा कदम उठाया है। आदिवासी भूमि पर पावर ऑफ अटॉर्नी के दुरुपयोग को रोकने के लिए छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 165 के तहत सख्त निर्देश जारी किए गए हैं। कलेक्टर ने स्पष्ट किया कि आदिवासियों के हितों की सुरक्षा प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता है और किसी भी तरह के शोषण या अनधिकृत भूमि हस्तांतरण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

पावर ऑफ अटॉर्नी के दुरुपयोग पर नकेल 

जिला प्रशासन को जानकारी मिली थी कि आदिवासियों की भूमि पर खरीद-बिक्री, रजिस्ट्री, नामांतरण, बंटवारा और लीज जैसे मामलों में पावर ऑफ अटॉर्नी का गलत इस्तेमाल हो रहा है। कई बार मूल आदिवासी के नाम पर पावर ऑफ अटॉर्नी बनाकर अन्य लोग भूमि का सौदा या राजस्व कार्य कर लेते हैं, जिससे आदिवासी भूमिहीन हो जाते हैं। इस पर रोक लगाने के लिए कलेक्टर ने विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं।  

यह हैं नए निर्देश....?  

1. मूल भू-स्वामी की उपस्थिति अनिवार्य:

यदि कोई पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर आदिवासी भूमि के हस्तांतरण का मामला कोर्ट में आता है, तो मूल भू-स्वामी को कोर्ट में पेश होना होगा। पावर ऑफ अटॉर्नी देने के कारणों की गहन जांच की जाएगी।  

2. वृद्ध या असमर्थ व्यक्तियों के लिए विशेष व्यवस्था:

अगर भू-स्वामी वृद्ध, बीमार या अन्य कारणों से कोर्ट में उपस्थित नहीं हो सकता, तो तहसीलदार और जनपद पंचायत के सीईओ उनके घर जाकर बयान दर्ज करेंगे। इस प्रक्रिया का वीडियो और फोटो कोर्ट में पेश किया जाएगा।  

3. ऑनलाइन कोर्ट और रिकॉर्डिंग: 

जिले के सभी कोर्ट को ऑनलाइन किया जाएगा। पावर ऑफ अटॉर्नी से जुड़े मामलों की कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग सुरक्षित रखी जाएगी।  

आदिवासियों के हितों की सुरक्षा पहली प्राथमिकता  

कलेक्टर विलास भोसकर ने कहा, “आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए प्रशासन पूरी तरह प्रतिबद्ध है। पावर ऑफ अटॉर्नी के दुरुपयोग से आदिवासियों को भूमिहीन होने से बचाने के लिए ये कदम उठाए गए हैं। सभी अधिकारी इन निर्देशों का कड़ाई से पालन करें।”  

ऑनलाइन सुनवाई से बढ़ेगी पारदर्शिता  

जिला कोर्ट की तर्ज पर अब एसडीएम और तहसील कोर्ट में भी ऑनलाइन सुनवाई होगी। इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि आदिवासियों के मामलों का तेजी से निपटारा भी हो सकेगा। प्रशासन का यह कदम आदिवासी समुदाय के लिए एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है।  

अधिकारियों को सख्त हिदायत  

कलेक्टर ने सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने की हिदायत दी है। उन्होंने चेतावनी दी कि आदिवासी हितों के साथ खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। यह कदम सरगुजा जैसे अनुसूचित जनजाति क्षेत्र में आदिवासियों के अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।