पंचायत सचिव की दबंगई: जवाबदेह कार्यशैली की जगह सरपंच -उपसरपंच पर बनाते दबाव; विकास ठप,कब जागेगा प्रशासन....?

पंचायत सचिव की दबंगई: जवाबदेह कार्यशैली की जगह सरपंच -उपसरपंच पर बनाते दबाव; विकास ठप,कब जागेगा प्रशासन....?

सूरजपुर/ओड़गी। ग्राम पंचायत अवंतिकापुर में पंचायत सचिव की मनमानी और दबंगई का खुला खेल चल रहा है। सरपंच, उपसरपंच और पंचों सहित पूरा गांव त्रस्त है। आरोप है कि सचिव पूर्व कार्यकाल के कामों में फर्जी और ज्यादा भुगतान दिखाकर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर दबाव बना रहा है। इससे विकास कार्य ठप हो गए हैं और पंचायत को निजी हितों का अड्डा बनाया जा रहा है। पंचायत राज अधिनियम के तहत निर्वाचित प्रतिनिधियों के प्रति अपनी जवाबदेही निभाने की बजाय सचिव की यह मनमानीपूर्ण कार्यशैली लोक सेवक आचरण के पूरी तरह विपरीत है, जो न सिर्फ नियमों की अवहेलना है बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर कर रही है।मामला तब सामने आया जब पूर्व कार्यकाल के एक काम का रिकॉर्ड में ₹1,12,000 का भुगतान दर्ज होने के बावजूद सचिव अब उसी काम का बकाया ₹2,67,000 बताकर जनप्रतिनिधियों को गुमराह कर रहा है। वर्तमान उपसरपंच ने जुलाई में इंजीनियर से एस्टीमेट बनवाकर दो नहानी घरों का निर्माण पूरा करवाया। एसडीओ स्तर से टेक्निकल सैंक्शन (टीएस) भी हो चुका है। नियमों के मुताबिक आधा भुगतान बनता है, लेकिन सचिव ने पैसा रोका हुआ है। शर्त रखी है कि जब तक उसके चहेते व्यक्ति को काम नहीं दिया जाएगा, तब तक सरपंच और उपसरपंच के किसी भी काम का भुगतान नहीं होगा।अचरज की बात यह भी है कि उक्त चहेता व्यक्ति ना तो कोई निर्वाचित प्रतिनिधि है, फिर भी सचिव उसे फेवर करने पर अड़ा है।जनप्रतिनिधियों का कहना है कि सचिव बार-बार धमकी देता है, "गरीब सरपंच-उपसरपंच उद्योगपति नहीं बन सकते, इसलिए काम चहेता व्यक्तिको सौंप दो।" सरपंच द्वारा कराए गए रोड रिपेयरिंग और पाइप पुलिया के काम भी भुगतान के इंतजार में अटके पड़े हैं। सचिव पंचायत के दस्तावेज तैयार करने से इनकार कर रहा है और उल्टे नियम-कानून की आड़ में प्रतिनिधियों को डराने की कोशिश कर रहा है। इससे गांव में विकास की रफ्तार थम गई है। ग्रामीणों का आरोप है कि सचिव की यह दबंगई पंचायत को निजी फायदे का जरिया बना रही है, जबकि पंचायत राज अधिनियम साफ कहता है कि सचिव को निर्वाचित प्रतिनिधियों की सहायता और जवाबदेही निभानी है, न कि मनमानी करनी। यह लोक सेवक के आचरण नियमों का सीधा उल्लंघन है, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। बहरहाल जनप्रतिनिधि और ग्रामीण अब प्रशासन की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। क्या जिला प्रशासन इस मामले में हस्तक्षेप करेगा और सचिव की मनमानी पर लगाम लगाएगा..? या फिर गांव की आवाज अनसुनी रह जाएगी...?