सरपंच की 'निजी सेवा': शासकीय ट्यूबवेल-हैंडपंप निजी भूमि व बाड़ियों में ठोंके, जरूरतमंद हलकान कलेक्टर से लगाई गुहार
कलेक्टर को शिकायत के बाद भी चुप्पी, क्या जिला प्रशासन की नजरअंदाजी से फल-फूल रहा भ्रष्टाचार...? जांच की मांग तेज
सूरजपुर। जिले के ग्राम पंचायत दवना के सरपंच अमर सिंह पर शासकीय मद से ट्यूबवेल और हैंडपंप निजी भूमि पर लगवाने का गंभीर आरोप लगा है। ग्रामीणों ने कलेक्टर को शिकायत सौंपकर मामले की जांच की गुहार लगाई है, लेकिन जिला प्रशासन की सुस्त कार्यशैली पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या अधिकारियों की मिलीभगत से सार्वजनिक धन का दुरुपयोग हो रहा है...? अगर निष्पक्ष जांच हुई तो केवल वर्तमान वित्तीय वर्ष में ही जिले भर में ऐसे सैकड़ों मामले सामने आ सकते हैं, जहां सरकारी मदों से 'सार्वजनिक' नाम पर निजी लाभ पहुंचाया गया।बीते दिनों जनपद पंचायत रामानुजनगर के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत दवना के ग्रामीणों ने कलेक्टर कार्यालय में शिकायत पत्र देकर सनसनीखेज खुलासा किया। उनके मुताबिक, वर्ष 2025-26 के लिए शासकीय मद से होने वाले ट्यूबवेल और हैंडपंप खनन कार्यों को सरपंच अमर सिंह ने नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए निजी लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया। शिकायत में स्पष्ट उल्लेख है कि ये कार्य शासकीय भूमि की बजाय निजी बाड़ियों में कराए गए, जो सीधे-सीधे भ्रष्टाचार की बू देता है।
ग्रामीणों ने आवेदन में विस्तार से बताया कि:
- भरूहापारा में मोतीलाल गुप्ता के घर के पास निजी भूमि/बाड़ी में ट्यूबवेल खनन।
- भरूडापारा में मनोज पटेल के घर के पास निजी भूमि/बाड़ी में ट्यूबवेल खनन।
- भरूहापारा में कल्याण सिंह के घर के पास निजी भूमि/बाड़ी में ट्यूबवेल खनन।
- अहिरापारा में देवनंदन के घर के पास निजी भूमि/बाड़ी में ट्यूबवेल खनन।
- अहिरापारा में खिलेश्वर यादव के घर के पास निजी भूमि/बाड़ी में हैंडपंप खनन।
दरअसल ये आरोप कोई नई बात नहीं हैं। रहवासियों का कहना है कि जिले के शहरी और ग्रामीण इलाकों में ऐसे कई मामले हैं, जहां शासकीय मदो से सार्वजनिक उपयोग के नाम पर निजी संपत्तियों पर कार्य कराए गए। लेकिन सवाल यह है कि जवाबदेह अधिकारी आखिर क्यों चुप हैं..? कलेक्टर को शिकायत मिलने के बाद भी कोई कार्रवाई न शुरू होना जिला प्रशासन की लापरवाही को उजागर करता है। क्या जवाबदेह अधिकारियों की नजरअंदाजी से सरपंचों व अन्य एजेंसियों को खुली छूट मिल रही है...? अगर जांच नहीं हुई तो ग्रामीणों का पानी का संकट और गहराएगा, जबकि सरकारी पैसा चुनिंदा लोगों की जेबें भरता रहेगा।रहवासियों ने मांग की है कि मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए, ताकि सच्चाई सामने आए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो। लेकिन प्रशासन की सुस्ती देखकर लगता है कि 'जांच' शब्द यहां सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह गया है। क्या अब उच्चाधिकारियों का हस्तक्षेप होगा, या ग्रामीणों की आवाज फिर दबा दी जाएगी...? इसका जवाब आने वाले दिनों में खुद ही हकीकत बनकर जाहिर होगा