बाल विवाह पर प्रशासन की सख्ती, कोटेया गांव में नाबालिग की शादी रोकी
सूरजपुर, 28 मई 2025। जिले में बाल विवाह की कुप्रथा पर अंकुश लगाने के लिए प्रशासन ने एक बार फिर सक्रियता दिखाई है। ग्राम कोटेया, पो. सलका, भैयाथान विकासखंड में मिली सूचना के आधार पर जिला प्रशासन और महिला एवं बाल विकास विभाग की संयुक्त टीम ने त्वरित कार्रवाई कर एक नाबालिग लड़की की शादी को रोकने में सफलता हासिल की। यह कार्रवाई बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता और कानूनी सख्ती की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, हालांकि स्थानीय स्तर पर विभागीय उदासीनता के सवाल भी उठ रहे हैं।प्राप्त जानकारी के अनुसार, भैयाथान विकासखंड के कोटेया गांव में एक नाबालिग लड़की, जिसकी उम्र मात्र 17 वर्ष थी, की शादी कराने की तैयारी चल रही थी। ग्रामीणों की सूचना पर जिला बाल संरक्षण अधिकारी मनोज जायसवाल के नेतृत्व में एक संयुक्त टीम मौके पर पहुंची। जांच में पाया गया कि बालिका की आयु विवाह के लिए निर्धारित न्यूनतम उम्र 18 वर्ष से कम थी। टीम ने परिवार वालों को बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के प्रावधानों की जानकारी दी, जिसमें 18 वर्ष से कम उम्र में शादी कराने पर 2 लाख रुपये तक का जुर्माना और 1 वर्ष की सजा का प्रावधान है। इसके साथ ही बैंड-बाजा, टेंट, खाना बनाने वाले और अन्य संबंधित व्यक्तियों को भी इस अपराध में शामिल माना जाता है। लंबी समझाइश और कड़े रुख के बाद परिवार शादी स्थगित करने पर सहमत हुआ। इसकी पुष्टि के लिए पंचनामा और कथन भी दर्ज किए गए।
कठिनाइयों के बीच प्रशासन की सक्रियता
बाल विवाह रोकने वाली टीम को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सामाजिक रूढ़ियों और परिवारों के प्रतिरोध के बावजूद, जिला प्रशासन और महिला एवं बाल विकास विभाग की टीम ने न केवल शादी को रोका, बल्कि परिवार को इसके दुष्परिणामों के बारे में भी जागरूक किया। जिला कार्यक्रम अधिकारी रमेश साहू के मार्गदर्शन में यह कार्रवाई की गई।
टीम में यह रहें शामिल
इस अभियान में जिला बाल संरक्षण अधिकारी मनोज जायसवाल, परियोजना अधिकारी मो. इमरान अख्तर, सहायक ग्रेड-1 अंजीत लकड़ा, सामाजिक कार्यकर्ता अंजनी साहू, आउटरीच वर्कर पवन धीवर, चाइल्ड लाइन से शीतल सिंह, थाना से आरक्षक ज्ञानेंद्र दुबे, महिला आरक्षक चंद्रकांता मुंजनी, पर्यवेक्षक मंजु मधुकर और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पार्वती सक्रिय रहीं।
सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार जरूर
सूरजपुर जिले में बाल विवाह की प्रथा अभी भी कई क्षेत्रों में गहरी जड़ें जमाए हुए है। सामाजिक रूढ़ियां, आर्थिक तंगी और जागरूकता की कमी इसके प्रमुख कारण हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बाल विवाह न केवल लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि सामाजिक विकास में भी बाधा बनता है।
विभागीय उदासीनता पर सवाल
हालांकि प्रशासन की इस कार्रवाई को सराहा जा रहा है, लेकिन स्थानीय लोग विभागीय सक्रियता पर सवाल उठा रहे हैं। कई लोगों का कहना है कि जागरूकता अभियानों और संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद बाल विवाह जैसी कुरीतियां अब भी जारी हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन की सक्रियता तभी दिखती है, जब मामला सामने आता है, जिसे "आग लगने पर कुआं खोदने" की कहावत से जोड़ा जा रहा है।
बाल विवाह के खिलाफ एकजुट होने की जरूरत
यह घटना एक बार फिर समाज को यह सोचने पर मजबूर करती है कि शिक्षा, जागरूकता और कानूनी सख्ती के बिना बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करना मुश्किल है। सूरजपुर प्रशासन की इस पहल ने एक सकारात्मक संदेश दिया है, लेकिन इस दिशा में निरंतर प्रयास और सामुदायिक सहयोग की जरूरत है।