प्रकाश इंडस्ट्रीज के खिलाफ ग्रामीणों का आक्रोश : तीन ग्राम सभाओं में कोल खदान की मनमानी पर जबरदस्त विरोध

प्रकाश इंडस्ट्रीज के खिलाफ ग्रामीणों का आक्रोश : तीन ग्राम सभाओं में कोल खदान की मनमानी पर जबरदस्त विरोध
प्रकाश इंडस्ट्रीज के खिलाफ ग्रामीणों का आक्रोश : तीन ग्राम सभाओं में कोल खदान की मनमानी पर जबरदस्त विरोध

सूरजपुर/भैयाथान, 7 जून 2025 । जिले के भैयाथान ब्लॉक में भास्करपारा कोल परियोजना को लेकर प्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड की मनमानी के खिलाफ ग्रामीणों का गुस्सा ज्वालामुखी-सा फट पड़ा। शुक्रवार को कलेक्टर एस. जयवर्धन के निर्देश पर दनौलीखुर्द, खाड़ापारा और केंवरा ग्राम पंचायतों में आयोजित विशेष ग्राम सभाओं में सैकड़ों ग्रामीणों ने कंपनी के खिलाफ हुंकार भरी। बिना ग्राम सभा की सहमति के खनन और कोयला परिवहन शुरू करने की कार्रवाई ने ग्रामीणों को सड़कों पर उतरने को मजबूर कर दिया। नाराज ग्रामीणों ने कोल परिवहन पर तत्काल रोक का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर कंपनी और प्रशासन को कड़ा संदेश दिया। मुआवजा बढ़ाने, सभी प्रभावितों को नौकरी, खदान में काम करने वालों को 25,000 रुपये मासिक वेतन और बुनियादी सुविधाओं की मांग के साथ ग्रामीणों ने कंपनी की वादाखिलाफी और प्रशासन की चुप्पी पर सवालों की बौछार की। वहीं दूसरी तरफ प्रकाश इंडस्ट्रीज के खिलाफ ग्रामीणों का यह आंदोलन अब और उग्र होने की ओर बढ़ रहा है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे सड़कों पर उतरकर बड़ा आंदोलन करेंगे। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे की गूंज ने इसे और व्यापक बना दिया है। जिला प्रशासन और कंपनी के बीच तनातनी बढ़ रही है, और अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या ग्रामीणों को उनका हक मिलेगा, या कॉरपोरेट की मनमानी के आगे उनकी आवाज दब जाएगी। 

दनौलीखुर्द: ग्रामीणों का उग्र तेवर, कंपनी अधिकारी बने मूकदर्शक

दनौलीखुर्द में विशेष ग्राम सभा शुरू होते ही माहौल तनावपूर्ण हो गया। सैकड़ों ग्रामीणों ने एकजुट होकर कंपनी के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि पांच महीने पहले बिना उनकी सहमति और ग्राम सभा की प्रक्रिया के खनन कार्य शुरू कर दिया गया। कंपनी के एजेंट पर वादाखिलाफी का गंभीर इल्जाम लगाते हुए ग्रामीणों ने कहा कि अस्पताल, सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के वादे अब तक हवा में हैं। खासकर महिलाओं ने मोर्चा संभाला और कंपनी की लूट को बेनकाब किया। एक महिला ग्रामीण ने गुस्से में कहा, “हमारी जमीनें छीन लीं, घर उजाड़ दिए, और अब नौकरी तक नहीं दी जा रही।” गुस्से का आलम यह था कि कंपनी के अधिकारी जवाब देने में नाकाम रहे और सभा छोड़कर भाग खड़े हुए। ग्रामीणों ने कोल परिवहन पर रोक का प्रस्ताव पारित कर जिला प्रशासन को सौंपा और चेतावनी दी कि मांगें न मानी गईं तो आंदोलन और उग्र होगा।

खाड़ापारा: प्रशासन पर सांठगांठ का आरोप, ग्रामीणों की एकजुटता

खाड़ापारा ग्राम पंचायत में आयोजित विशेष ग्राम सभा में कंपनी के सीएसआर प्रमुख और प्रशासनिक अधिकारी की मौजूदगी में ग्रामीणों ने अपनी ताकत दिखाई। सरपंच रामधारी सिंह, अध्यक्ष सोहन राम, जनपद सदस्य इंद्रावती राजवाड़े, उप सरपंच कल्पना कुशवाहा, पंच शिवकुमारी राजवाड़े, बबीता सिंह, अनीता रक्सेल और ननकी रक्सेल ने एकजुट होकर कंपनी के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया। किसान नेता सुनील साहू और नरेंद्र साहू ने प्रशासन पर कंपनी से सांठगांठ का सनसनीखेज आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “ग्रामीणों के अधिकारों को कुचला जा रहा है। बिना सहमति और ग्राम सभा के खनन शुरू करना कानून का खुला उल्लंघन है।” सभा में ग्रामीणों ने कोल परिवहन पर तत्काल रोक की मांग को लेकर प्रस्ताव सौंपा और चेतावनी दी कि यदि मांगें नहीं मानी गईं तो सड़कें जाम कर दी जाएंगी।

केंवरा: मुआवजा और नौकरी की जंग, बहिष्कार की चेतावनी

केंवरा ग्राम पंचायत में विशेष ग्राम सभा के दौरान ग्रामीणों ने कंपनी के खिलाफ जोरदार विरोध दर्ज किया। मुआवजा राशि बढ़ाने, सभी प्रभावितों को नौकरी देने और खदान में काम करने वालों को 25,000 रुपये मासिक वेतन की मांग को लेकर ग्रामीणों ने सामूहिक आवेदन सौंपा। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो खदान का पूर्ण बहिष्कार किया जाएगा। ग्रामीणों ने कंपनी पर वादों से मुकरने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी जमीनें, घर और आजीविका छीन ली गई, मगर बदले में सिर्फ झूठे आश्वासन मिले। एक ग्रामीण ने कहा, “हमारी जिंदगी बर्बाद कर दी, और अब हमारी आवाज तक दबाने की कोशिश हो रही है।

पांच महीने, कोई ग्राम सभा नहीं: सवालों का तूफान

प्रकाश इंडस्ट्रीज को भास्करपारा कोल परियोजना में खनन और कोयला परिवहन शुरू किए पांच महीने से ज्यादा समय हो चुका है, मगर इस दौरान न तो कोई ग्राम सभा आयोजित की गई और न ही ग्रामीणों की सहमति ली गई। दनौलीखुर्द के किसानों का कहना है कि उनकी जमीनें जबरन हड़प ली गईं, घर उजाड़ दिए गए, और मुआवजा देने में भारी अनियमितताएं बरती गईं। सवाल उठता है कि बिना ग्राम सभा के फेज-1 का भूमि अधिग्रहण कैसे हुआ...? मुआवजा निर्धारण और वितरण किस आधार पर किया गया...? और अब अचानक विशेष ग्राम सभा की जरूरत क्यों पड़ी? ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी ने डर और दबाव के बल पर हस्ताक्षर करवाए, मगर नौकरी, मुआवजा और बुनियादी सुविधाओं के वादे अधूरे छोड़ दिए।

"खाता न बही, कंपनी जो कहे वही सही"

दनौलीखुर्द के बुजुर्ग किसान ने कंपनी की कार्यशैली पर करारा तंज कसते हुए कहा, “खाता न बही, कंपनी जो कहे वही सही! यही चल रहा है।” उन्होंने बताया कि खनन से पहले कंपनी ने सुनहरे सपने दिखाए—अस्पताल, सड़क, बिजली, पानी और नौकरी का लालच दिया गया। मगर अब ग्रामीणों के पास न जमीन बची, न घर, और न ही कोई सुनवाई। कंपनी के निर्देशक ए.के. चतुर्वेदी ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया कि जमीन देने वालों ने सहमति दी थी। लेकिन ग्रामीणों ने इस दावे को सिरे से नकारते हुए कहा कि उनकी सहमति जबरन हासिल की गई।

प्रशासन की चुप्पी, ग्रामीणों का गुस्सा

ग्रामीणों ने जिला प्रशासन पर भी सवालों की बौछार की। उनका कहना है कि प्रशासन की निष्क्रियता और कंपनी से मिलीभगत के कारण उनकी आवाज दबाई जा रही है। सवाल उठता है कि पांच महीने तक बिना ग्राम सभा के खनन और परिवहन कैसे चला? अब विशेष ग्राम सभाओं का आयोजन क्यों करवाया गया? ग्रामीण मांग कर रहे हैं कि उनकी जमीनों, घरों और पेड़ों का उचित मुआवजा दिया जाए, सभी प्रभावितों को नौकरी दी जाए, और कंपनी की मनमानी पर अंकुश लगाया जाए।