ग्रामीण अंचलों में मत्स्य पालन बना आत्मनिर्भरता का नया जरिया, वैज्ञानिक तकनीक से खिल रही किसानों की किस्मत
अम्बिकापुर।प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ग्रामीण भारत में आजीविका के नए द्वार खोल रही है, जिसके बल पर किसान आत्मनिर्भरता की राह पर तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका जीता-जागता उदाहरण हैं अम्बिकापुर विकासखण्ड के ग्राम कुल्हाड़ी के मदन राम, जिन्होंने बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन शुरू कर हर साल दो लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा कमा रहे हैं।मदन राम ने अपने खेत की 30 डिसमिल जमीन पर वैज्ञानिक पद्धति से बायोफ्लॉक तालाब बनवाया। इस तालाब में बायोफ्लॉक शीट, ऑक्सीजन मशीन, सबमर्सिबल पंप और जनरेटर जैसी आधुनिक सुविधाएँ हैं, जो जल की गुणवत्ता और मछलियों की वृद्धि को सुनिश्चित करती हैं। तालाब निर्माण में कुल 14 लाख रुपए की लागत आई, जिसमें से 8.40 लाख रुपए की सब्सिडी योजना के तहत मिली।मदन राम बताते हैं, “बायोफ्लॉक तकनीक से मछलियाँ तेजी से बढ़ती हैं और उत्पादन ज्यादा होता है। तालाब में शीट की वजह से पानी का तापमान और गुणवत्ता नियंत्रित रहती है।” उन्होंने मत्स्य पालन विभाग से मिले मार्गदर्शन और तकनीकी सहायता की सराहना की। पहले खेती से सीमित आय होती थी, लेकिन अब मछली पालन से उनकी आमदनी कई गुना बढ़ गई है।खास बात यह है कि अब तालाब में मछलियाँ खुद बीज तैयार कर रही हैं, जिससे लागत घटी और मुनाफा बढ़ा। मदन राम कहते हैं, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री विष्णु देव साय का धन्यवाद। इस योजना ने हमें आत्मनिर्भर बनने का सुनहरा मौका दिया।”
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा: प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत बायोफ्लॉक तकनीक ग्रामीण किसानों, युवाओं और स्व-सहायता समूहों के लिए समृद्धि का नया रास्ता बन रही है। यह योजना न केवल आजीविका के अवसर बढ़ा रही है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त कर रही है।