झेलगी पर लाचार मरीज, प्रशासन का खंडन: स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत उजागर, जवाबदेही कौन लेगा...?
सूरजपुर, 15 सितंबर 2025। प्रतापपुर विकासखंड के ग्राम गोरगी में कोड़ाकु जनजाति के एक युवक को बुखार की हालत में बांस की झेलगी पर कई किलोमीटर तक लादकर मुख्य सड़क तक लाने और फिर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रतापपुर पहुंचाने की दिल दहलाने वाली घटना ने जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की पोल खोल दी है।इस मामले पर समाचार पत्रों और न्यूज पोर्टलों में खबरें छपने के बाद जिला प्रशासन ने 15 सितंबर को आनन-फानन में प्रेस विज्ञप्ति जारी कर खबर का खंडन तो किया, मगर जवाबदेही स्वीकार करने या समाधान की दिशा में कदम उठाने के बजाय अपनी नाकामी छिपाने की कोशिश की।प्रेस विज्ञप्ति में प्रशासन ने दावा किया कि मरीज का निवास दो पहाड़ों के बीच पहुंचविहीन क्षेत्र में है, जहां 108 एंबुलेंस सेवा उपलब्ध कराना संभव नहीं था। साथ ही यह भी कहा कि मरीज ने न तो 108 एंबुलेंस को सूचना दी, न ही मितानिन या जनप्रतिनिधियों को अपनी स्थिति बताई। प्रशासन के अनुसार, 14 सितंबर को बुखार से पीड़ित मरीज को ग्रामीणों ने झेलगी से मुख्य सड़क तक पहुंचाया, जहां से वाहन द्वारा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रतापपुर ले जाया गया। वहां प्राथमिक उपचार के बाद मरीज को मेडिकल कॉलेज अम्बिकापुर रेफर किया गया, लेकिन मरीज ने वहां जाने से मना कर दिया। प्रशासन ने जोर देकर कहा कि मरीज को स्वास्थ्य सुविधा दी गई और यह आरोप गलत है कि उपचार नहीं मिला।लेकिन यह खंडन ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली और प्रशासनिक लापरवाही की कड़वी सच्चाई को छिपा नहीं सका। सात किलोमीटर की पैदल दूरी, सड़कों का अभाव, और एंबुलेंस की अनुपलब्धता अनुसूचित जनजाति की उपेक्षा को उजागर करती है। ग्रामीणों का गुस्सा साफ है—अगर बुनियादी सुविधाएं समय पर मिलतीं, तो मरीज को झेलगी पर लाने की अमानवीय स्थिति से नहीं गुजरना पड़ता। प्रशासन का खंडन इस सवाल का जवाब नहीं देता कि आखिर क्यों दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं आज भी सपना बनी हुई हैं...?
जवाबदेही से भागता प्रशासन: यह घटना सूरजपुर जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और प्रशासन की उदासीनता का जीता-जागता सबूत है। अनुसूचित जनजाति बाहुल्य क्षेत्र तक मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने का दम भरने वाला प्रशासन क्या इस मामले को गंभीरता से लेगा, या खंडन की आड़ में अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ेगा...? जनता अब जवाब मांग रही है—क्या प्रशासन केवल प्रेस विज्ञप्ति जारी कर अपनी ड्यूटी पूरी समझेगा, या वास्तव में सुधार की दिशा में कदम उठाएगा...?