हाथियों का कहर: वन विभाग की लापरवाही से युवक की दर्दनाक मौत, मानव-वन्यजीव संघर्ष में बढ़ते हादसे विभाग पर सवाल
सूरजपुर (ब्रेकिंग)। सूरजपुर वनमंडल में हाथियों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है। मानव-वन्यजीव संघर्ष की ताजा घटना ने एक बार फिर वन विभाग की तैयारियों और मुस्तैदी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हरिपुर चंद्रपुर मार्ग पर स्थित मोहनपुर जंगल में करीब 25 हाथियों का दल विचरण कर रहा था, जहां स्थानीय चेतावनियों के बावजूद एक युवक की मोटरसाइकिल सवार की दर्दनाक मौत हो गई। यह हादसा न केवल ग्रामीणों में दहशत फैला रहा है, बल्कि वन विभाग की बार-बार दोहराई जाने वाली लापरवाही को भी उजागर कर रहा है, जहां विभाग के दावों के विपरीत प्रभावी रोकथाम के कोई ठोस कदम नजर नहीं आ रहे।घटना बुधवार रात की बताई जा रही है, जब हरिपुर गांव से निकले राम साय पिता शोभरन साय, उम्र: लगभग 39 वर्ष मोटरसाइकिल पर जंगल के रास्ते से गुजर रहे थे। सूत्रों के अनुसार, स्थानीय लोगों ने हाथियों की मौजूदगी की पूर्व चेतावनी दी थी, लेकिन राम साय ने इसे नजरअंदाज कर दिया। इसी दौरान वे हाथियों के दल की चपेट में आ गए, जहां भारी भरकम हाथियों ने उन्हें कुचल दिया और मौके पर ही उनकी मौत हो गई। उनके साथ दो अन्य लोग भी थे, जिन्होंने जान बचाने के लिए भागते हुए किसी तरह अपनी जान बचाई।घटना की सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम ने मौके पर पहुंचकर शव को कब्जे में लिया और प्रारंभिक जांच शुरू की। विभाग ने मृतक के परिजनों को 25 हजार रुपये की तात्कालिक सहायता राशि प्रदान की, लेकिन सवाल यह उठता है कि विभाग की 'मुस्तैदी' के दावे आखिर कहां खो जाते हैं...? सूरजपुर और आसपास के जिलों—जैसे सरगुजा, बलरामपुर और जशपुर—में हाथी हमलों की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। वन विभाग के अधिकारियों का घटना के बाद अक्सर कहना रहता है कि वे हाथियों के मूवमेंट पर नजर रख रहे हैं और ग्रामीणों को जंगल क्षेत्र में सावधानी बरतने, रात में आवाजाही से बचने की अपील कर रहे हैं। लेकिन ये अपीलें कितनी कारगर साबित हो रही हैं? बार-बार हो रही ऐसी घटनाएं बताती हैं कि विभाग की रणनीति में कमी है—न तो निगरानी का व्यापक उपयोग हो रहा है, न ही ग्रामीणों के लिए सुरक्षित कॉरिडोर या अलर्ट सिस्टम विकसित किए जा रहे हैं। यह घटना मानव-वन्यजीव संघर्ष के व्यापक संकट को रेखांकित करती है, जहां वन विभाग की लापरवाही सीधे निर्दोष जिंदगियों पर भारी पड़ रही है। यदि तत्काल सुधार नहीं किए गए—जैसे बढ़ी हुई गश्त, समुदाय-आधारित अलर्ट सिस्टम और मुआवजे में वृद्धि—तो आने वाले दिनों में और भी दर्दनाक हादसे सामने आ सकते हैं। स्थानीय लोग अब प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि वन विभाग की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए, ताकि ऐसी त्रासदियां दोहराई न जाएं।