"पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण में जनसहभागिता जरूरी: डॉ. मोहन साहू"

"पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण में जनसहभागिता जरूरी: डॉ. मोहन साहू"
"पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण में जनसहभागिता जरूरी: डॉ. मोहन साहू"

रायपुर। अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस 2025 के अवसर पर रायपुर स्थित महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय के सभागार में तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य आयोजन हुआ। इस वर्ष का थीम "तेजी से बदलते समुदायों में संग्रहालय का भविष्य" रहा। संस्कृति विभाग के अधीन संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय और इंटरनेशनल कौंसिल ऑफ म्यूज़ियम्स (ICOM-INTERCOM) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस संगोष्ठी में देशभर के ख्यातिनाम पुराविद, साहित्यकार, वैज्ञानिक, संग्रहालय विशेषज्ञ और शोधार्थी सम्मिलित हुए।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अहमदाबाद वर्ल्ड हेरिटेज सिटी के विशेषज्ञ समिति सदस्य डॉ. नंदन शास्त्री ने संग्रहालयों में नवीनतम तकनीकों की भूमिका और संग्रहालय को जनसमुदाय से जोड़ने के नवाचारों पर विस्तार से प्रकाश डाला। विशिष्ट अतिथि के रूप में आचार्य रमेन्द्रनाथ मिश्र, डॉ. संजीव कुमार सिंह, और ICOM इंटरकॉम की बोर्ड मेंबर सुश्री रीना दीवान की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

इस अवसर पर डॉ. मोहन साहू ने सरगुजा और सूरजपुर जिले में बिखरी पड़ी पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण पर जोर देते हुए स्थानीय जनसमुदाय की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि इन जिलों में अनेक पुरातात्विक संपदाएं उपेक्षित अवस्था में हैं, जिन्हें संरक्षित करने के लिए जनसहयोग आवश्यक है।

डॉ. पीयूष रंजन साहू ने संग्रहालयों की डिज़ाइनिंग में समावेशिता और तकनीकी उपयोग की आवश्यकता बताई, वहीं डॉ. उमाकांत मिश्रा ने ओडिशा के संदर्भ में संग्रहालयों को लोककथाओं और जनस्मृतियों के संग्रह स्थल के रूप में देखने की अवधारणा प्रस्तुत की।

संगोष्ठी के दौरान "Discourses on the Future of Museums in Rapidly Changing Communities" नामक प्रोसिडिंग्स का विमोचन भी किया गया, जिसमें विभिन्न विद्वानों के व्याख्यानों का संग्रह प्रकाशित है।

एक महत्वपूर्ण कदम के तहत इस आयोजन में IIT भिलाई और छत्तीसगढ़ पर्यटन बोर्ड के बीच एमओयू भी संपन्न हुआ, जिसके तहत तकनीक और संस्कृति के समन्वय से धरोहरों और पर्यटन स्थलों के विकास को गति मिलेगी।

तीसरे दिन प्रतिभागियों ने पुरखौती मुक्तांगन और नवनिर्मित जनजातीय संग्रहालय का भ्रमण किया, जहां गुजरात, बंगाल और मध्यप्रदेश से आए विद्वानों ने आदिवासी और पुरातात्विक धरोहरों का अवलोकन किया।

समापन सत्र में डॉ. सरोज घोष को श्रद्धांजलि दी गई और महावीर इंटर कॉन्टिनेंटल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन द्वारा संग्रहालय कर्मियों को सम्मानित किया गया।

डॉ. पी. सी. पारख, डॉ. अमित सोनी, श्री अशोक तिवारी, श्री लोकेश कावड़िया सहित कई गणमान्य जनों की उपस्थिति में संगोष्ठी का समापन हुआ।

इस संगोष्ठी ने संग्रहालयों को केवल धरोहर संरक्षण का स्थल न मानकर, उन्हें समाज के सक्रिय भागीदार के रूप में देखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण विमर्श प्रस्तुत किया।