33 साल बाद मिला न्याय: सिंहदेव के ‘अलकनंदा’ की तालाबंदी पर अदालत की सख्त टिप्पणी, पूर्व कलेक्टर टीएस छतवाल को चुकाना होगा जुर्माना
अम्बिकापुर।तीन दशक पुराने बहुचर्चित अलकनंदा टॉकीज तालाबंदी प्रकरण में अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है। सरगुजा राजपरिवार के स्वामित्व वाले सिनेमा हॉल का लाइसेंस निरस्त करने को अदालत ने दुर्भावनापूर्ण कार्यवाही करार देते हुए तत्कालीन कलेक्टर टीएस छतवाल को दोषी ठहराया है। अदालत ने छतवाल को राजपरिवार को 34,795 रुपये ब्याज सहित क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करने का आदेश दिया है। दरअसल मामला वर्ष 1992 का है, जब राजपरिवार के सदस्य और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव अलकनंदा टॉकीज का संचालन कर रहे थे। उसी दौरान वाड्रफनगर के बिजाकुरा गांव में भूख से हुई तीन मौतों ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था।राजपरिवार की वरिष्ठ सदस्य पूर्व मंत्री श्रीमती देवेंद्र कुमारी सिंहदेव ने इस मुद्दे को जोरदार ढंग से उठाते हुए तत्कालीन कलेक्टर के निलंबन की मांग की थी।राजनीतिक तापमान इतना बढ़ा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव को खुद वाड्रफनगर पहुंचकर स्थिति का जायजा लेना पड़ा।तनाव भरे माहौल में 19 अप्रैल 1992 को कलेक्टर छतवाल ने अलकनंदा टॉकीज का लाइसेंस निरस्त करने का नोटिस जारी किया।हालांकि 24 अप्रैल को जबलपुर हाईकोर्ट ने सिंहदेव परिवार के पक्ष में स्थगन आदेश जारी किया था, लेकिन कलेक्टर ने आदेश को स्वीकार करने से इंकार करते हुए उसी दिन टॉकीज को बंद करा दिया।इससे चार शो रद्द हुए और लगभग 8 हजार रुपये का नुकसान हुआ।आबकारी आयुक्त ने अदालत में बताया कि विभागीय फाइल ही उपलब्ध नहीं है। अदालत ने इसे मनमानी कार्रवाई मानते हुए छतवाल पर क्षतिपूर्ति का दायित्व तय किया।यह राशि न्यायालय में जमा करा दी गई है।
सिंहदेव परिवार के लिए न्याय की जीत:तीन दशक बाद आए इस फैसले को राजनीतिक प्रतिशोध पर न्याय की जीत माना जा रहा है।पूर्व मंत्री श्रीमती देवेंद्र कुमारी सिंहदेव के द्वारा भूख से मौतों का मामला उठाना सत्ता को नागवार गुजरा था, उसी का नतीजा यह कार्रवाई थी। वहीं दूसरी तरफ श्री सिंहदेव के अधिवक्ता संतोष सिंह ने कहा है कि यह केवल कानूनी नहीं, नैतिक जीत भी है। सरगुजा पैलेस ने हमेशा कानून का सम्मान किया और हर बार बेदाग साबित हुआ।