समाचार के बाद जागा प्रशासन, अमृत सरोवर जांच में दिखी ‘खानापूर्ति’ की तस्वीर:जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप, उन्हीं से कराई नाप-जोख—ऐसी जांच कितनी निष्पक्ष..?
सूरजपुर । अमृत सरोवर योजना के तहत प्रेमनगर जनपद पंचायत अंतर्गत ग्राम विंध्याचल में निर्मित अमृत सरोवर को लेकर प्रमुखता से समाचार प्रकाशन के बाद प्रशासन हरकत में तो आया, लेकिन 27 दिसंबर को की गई तथाकथित जांच ने कार्रवाई से ज्यादा औपचारिकता और लिपापोती का संदेश दिया। गठित जांच दल की मौजूदगी से ग्रामीणों को उम्मीद थी कि गंभीर अनियमितताओं पर ठोस पड़ताल होगी, मगर मौके की स्थिति ने जांच की निष्पक्षता पर ही सवाल खड़े कर दिए। सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार जांच दल में ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग सूरजपुर के कार्यपालन अभियंता, आरईएस के एसडीओ, तकनीकी सहायक और रोजगार सहायक शामिल रहे। शिकायतकर्ता व सामाजिक संगठन के पदाधिकारी भी मौके पर मौजूद थे। लेकिन सबसे बड़ा और गंभीर प्रश्न तब उठा, जब नाप-जोख और तकनीकी जांच की जिम्मेदारी उसी तकनीकी सहायक को सौंप दी गई, जिन पर पहले से भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के गंभीर आरोप हैं। नियमों के अनुसार, ऐसे मामलों में स्वतंत्र तकनीकी अमले से जांच कराई जानी चाहिए थी, लेकिन आरोपित की मौजूदगी और सक्रिय भूमिका ने पूरी प्रक्रिया को संदेह के घेरे में डाल दिया।
जंगल में बना सरोवर, उपयोगिता पर सवाल
जांच स्थल तक पहुंचने की कठिनाई ही योजना की उपयोगिता पर प्रश्नचिह्न लगाती है। अमृत सरोवर जंगल के भीतर स्थित है, जहां सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए लगभग 20 किलोमीटर का अतिरिक्त फेरा लगाना पड़ता है। नदी मार्ग से पैदल पहुंच संभव है, लेकिन वह भी केवल जलस्तर कम होने की स्थिति में। ग्रामीणों का कहना है कि यह स्थल न तो आबादी के पास है और न ही नियमित उपयोग के अनुकूल, फिर भी यहां लाखों रुपये खर्च कर दिए गए।
तकनीकी खामियों पर चुप्पी
सूत्रों की मानें तो जांच के दौरान सरोवर में पानी का स्तर कम पाया गया। पुराने आउटलेट को तोड़कर बनाए गए नए आउटलेट का केवल औपचारिक निरीक्षण किया गया। सीढ़ियों में आए क्रैक, स्टोन पिचिंग की वास्तविक लंबाई, कोर कटिंग, दूसरे छोर पर बने आउटलेट जैसे अहम तकनीकी बिंदुओं को नजरअंदाज कर दिया गया। यही नहीं, स्वीकृत तकनीकी रूपरेखा, दिशा-निर्देश और निर्माण से जुड़े दस्तावेज भी मौके पर प्रस्तुत नहीं किए गए।
लाभार्थी चयन भी संदेह के घेरे में
ग्रामीणों ने स्पष्ट किया कि इस अमृत सरोवर का वास्तविक लाभ ग्राम विंध्याचल की बजाय समीप की बस्ती के लोगों को मिलेगा। इसके बावजूद लाभार्थी चयन, सामाजिक अंकेक्षण और योजना की वास्तविक उपयोगिता पर कोई ठोस जांच नहीं हुई।
पंचनामा और कथन पर भी सवाल
आरोप लगे कि तकनीकी सहायक ने अपने समर्थकों को बुलाकर पंचनामा और कथन तैयार कराए और ग्रामीणों से उसी पर हस्ताक्षर कराए गए। इस दौरान पंचायत सचिव, मनरेगा कार्यक्रम अधिकारी और जनपद सीईओ का मौके से नदारद रहना भी चर्चा का विषय बना। अधिकारियों का दावा है कि ग्रामीणों के कथन लिए गए हैं, लेकिन उनकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल कायम हैं।
पहले भी मानी गई थीं अनियमितताएं
यह भी तथ्य सामने है कि पूर्व में जनपद स्तर पर गलत आउटलेट तोड़ने और जंगल क्षेत्र में निर्माण को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया जा चुका है। इसके बावजूद उसी तकनीकी सहायक को दोबारा जांच में प्रमुख भूमिका देना प्रशासनिक मंशा पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है।
18 लाख की योजना, काम 4–5 लाख का..?
आरोप है कि करीब 18 लाख रुपये की योजना में मजदूरी के नाम पर 13 लाख से अधिक की राशि निकाल ली गई, जबकि भौतिक स्थिति में कार्य 4 से 5 लाख रुपये से अधिक का नहीं दिखता। मनरेगा ऑनलाइन रिकॉर्ड और जमीनी हकीकत के बीच भारी अंतर पहले ही उजागर हो चुका है।
संयुक्त जांच और हटाने की मांग
हमर उत्थान सेवा समिति ने स्पष्ट मांग रखी है कि इस मामले की जांच केवल एक विभाग तक सीमित न रखकर संयुक्त जांच दल से कराई जाए। साथ ही, जांच पूरी होने तक आरोपित तकनीकी सहायक को क्षेत्र से हटाने की भी मांग की गई है, ताकि जांच प्रभावित न हो।कुल मिलाकर, 27 दिसंबर को हुई यह जांच जवाबदेही तय करने के बजाय खानापूर्ति अधिक प्रतीत होती है। अब देखने वाली बात यह होगी कि जांच प्रतिवेदन के बाद प्रशासन वास्तव में सख्त कार्रवाई करता है या यह गंभीर मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा।