जन औषधि योजना पर संकट, डॉक्टरों की बेरुखी और प्रशासन की लापरवाही बनी बाधा
सूरजपुर । प्रधानमंत्री जन औषधि योजना, जो गरीब और मध्यम वर्ग को सस्ती व गुणवत्तापूर्ण दवाइयां मुहैया कराने का वादा करती है, सूरजपुर जिले में दम तोड़ती नजर आ रही है। जिला प्रशासन की उदासीनता और डॉक्टरों की गैर-जिम्मेदाराना रवैये ने इस महत्वाकांक्षी योजना को पंगु बना दिया है। जिले के सरकारी अस्पतालों में खुले जन औषधि केंद्रों पर दवाइयों की बिक्री ठप है, जिससे संचालकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर स्थानीय जन औषधि केंद्रों के संचालकों का कहना है कि डॉक्टर मरीजों को इन केंद्रों की सस्ती जेनेरिक दवाइयों की सिफारिश करने के बजाय निजी मेडिकल स्टोर्स की ओर रुख करने को कहते हैं। एक संचालक ने गुस्से में बताया, महीने भर की मेहनत के बाद भी दैनिक मजदूरी तक नहीं निकल पाती। दवाइयां बिना बिके एक्सपायर हो रही हैं, और प्रशासन से कोई सहयोग नहीं मिल रहा। नतीजतन, कई संचालक दुकान बंद करने की कगार पर हैं।जबकि प्रदेश के अन्य जिलों में यह योजना सफलतापूर्वक चल रही है, सूरजपुर में जागरूकता अभियान का अभाव और प्रशासनिक लापरवाही इसे असफल बना रही है। ये केंद्र 50% से 90% तक सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराते हैं, जो गरीब मरीजों के लिए वरदान साबित हो सकती हैं। लेकिन डॉक्टरों की उपेक्षा और प्रचार की कमी ने योजना की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
सवाल प्रशासन से आखिर उदासीनता अब तक क्यों
आखिर सूरजपुर जिले में ही यह योजना क्यों फेल हो रही है...? यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, डॉक्टरों को जन औषधि दवाइयों की सिफारिश के लिए प्रेरित नहीं किया गया और जनता को इसके लाभों से अवगत नहीं कराया गया, तो जिले के सभी जन औषधि केंद्रों में ताले लगना तय है। इससे गरीब मरीज सस्ती दवाइयों से वंचित रह जाएंगे, और सरकार की यह महत्वपूर्ण योजना सूरजपुर में पूरी तरह विफल हो जाएगी।
आखिर जिम्मेदारी किसकी...?
अब देखना यह है कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इस स्थिति को सुधारने के लिए क्या कदम उठाते हैं, वरना जन औषधि योजना का मकसद सूरजपुर में सिरे से अधूरा रह जाएगा।