मुहर्रम में कासिद की परंपरा:नवादा में कई स्थानों पर निकला जुलूस, पारंपरिक खेलों का प्रदर्शन

मुहर्रम में कासिद की परंपरा:नवादा में कई स्थानों पर निकला जुलूस, पारंपरिक खेलों का प्रदर्शन
नवादा में मुहर्रम के मौके पर पैंक की पारंपरिक रस्म अदा की गई। पैंक हजरत इमाम हुसैन का कासिद यानी संदेशवाहक होता है। इस परंपरा में लोग हरे कपड़े पहनते हैं। वे हाथों में खजूर का डंठल और कमर में घंटी बांधकर नंगे पैर चलते हैं। यह परंपरा कर्बला की ऐतिहासिक घटना से जुड़ी है। कुफा वालों ने हजरत इमाम हुसैन को मक्का से बुलाकर धोखा दिया था। ईबने जयाद के सैनिकों ने नवासा-ए-रसुल और उनके 72 साथियों को शहीद कर दिया था। उस वक्त कासिद 'या हुसैन' का नारा लगाते हुए कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन की शहादत की खबर दे रहा था। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक लोग अपनी मुश्किलों में इमाम से मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर पैंक बांधकर उसे पूरा करते हैं। मुहर्रम की 7वीं तारीख को मगरिब की नमाज के बाद पैंक बांधा जाता है। योम-ए-आशुरा यानी 10वीं मुहर्रम को असर की नमाज के बाद इसे खोला जाता है। पैंक बांधने वालों को नमकीन खाना और नरम गद्दे पर सोना मना होता है। पैंक की पोशाक में हर चीज का खास मतलब है। कमर की घंटी कासिद की पहचान है। खजूर का डंठल अरब का प्रतीक है। हरा कपड़ा और रूमाल इस्लामी पहनावा माना जाता है। इस मौके पर इमाम बाड़ों से सिपहर और फुल चौकी का जुलूस निकाला गया। जुलूस शहर के अलग-अलग इलाकों से होते हुए इमाम बाड़ा पहुंचा। रास्ते में जगह-जगह पारंपरिक खेलों का प्रदर्शन भी किया गया।